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वहाबियों द्वारा हज का दुरुपयोग।

हज का मौसम भी वहाबियों को अपने विचारों को फैलाने का अहम प्लेटफ़ार्म है, इन दिनों में लाखों हाजी पूरी दुनिया से एक जगह जमा होते हैं, वहाबियत की अहम संस्थाएं वहाबियत के अक़ाएद और विचारों को फैलाने के लिए जी जान से कोशिश करते हैं, और इस मौक़े को अपने लिए सब से विशेष समझ कर अपनी घटिया सोंच को सारे मुसलमानों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं

हज का मौसम भी वहाबियों को अपने विचारों को फैलाने का अहम प्लेटफ़ार्म है, इन दिनों में लाखों हाजी पूरी दुनिया से एक जगह जमा होते हैं, वहाबियत की अहम संस्थाएं वहाबियत के अक़ाएद और विचारों को फैलाने के लिए जी जान से कोशिश करते हैं, और इस मौक़े को अपने लिए सब से विशेष समझ कर अपनी घटिया सोंच को सारे मुसलमानों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं, वह हर भाषा के हाजियों के पास उसी भाषा के लोगों को भेज कर उन्हें गुमराह करते हैं, अगर हाजी पढ़े लिखे होते तो उनको अपनी विशेष जगहों पर ले जा कर रिझा कर वहाबियत का प्रचार करते, वह हाजियों के बीच विशेष रूप से ईरानी हाजियों के बीत फ़ारसी भाषा में शियों के विरुध्द लिखी गई किताबें अंधाधुंध मुफ़्त में बांटते, उनकी किताबों का केवल टारगेट यह होता है कि अपने बातिल विचारों और अक़ाएद को किसी भी तरह साबित कर के शियों और दूसरे इस्लामी फ़िरक़ों के अक़ाएद को नीचा और ग़लत दिखाना होता है, जबकि उनको समझ लेना चाहिए उनके बातिल और घटिया अक़ाएद का शिया अक़ाएद पर थोड़ा भी प्रभाव नहीं पड़ने वाला और साथ ही सुन्नियों के भी तक़रीबन सारे फ़िरक़े उन के विचारों को बातिल मानते हैं, उनकी हार आज तालिबान और अलक़ाएदा और तक़रीबन दाएश के नाबूद हो जाने की शक्ल में सामने है, मशहूर लेखक अली असग़र रिज़वानी एक बड़े विद्वान का हवाला देते हुए लिखते हैं कि, ताजिकिस्तान देश में वहाबियों की ओर से एक बहुत बड़ा बाग़ बना कर उसमें क्लासेस का सिलसिला शुरू किया गया फिर अलग अलग विश्वविधालय और मदरसों से लोगों को उस 3 महीने की क्लासेस में हिस्सा लेने के लिए दावत दी, 3 महीने की क्लासेस के बाद उन में 400 लोगों को चुन कर सऊदी के मदीना शहर के अल-इस्लामिया विश्वविधालय में 2 साल के लिए अध्यन करने के लिए भेजा गया, इन लोगों ने वहां वहाबियत के बारे में हर प्रकार के विचारों और और शियों को ग़लत ठहराए जाने की अच्छी तरह से ट्रेनिंग ली, फिर इन्हें ताजिकिस्तान के अलग अलग शहरों और एशिया के कई देशों में भेजा गया (सल्फ़ीगरी, पेज 197)
इसके बाद वह लिखते हैं कि, केवल 2003 के हज में 10 मिलियन 6 लाख 85 हज़ार जिल्द किताबों को विश्व में बोली जाने वाली 20 भाषाओं में अधिकतर शियों के विरुध्द किताबों को छाप कर मुफ़्त में बांटा गया, इसी प्रकार सऊदी के क़तीफ़ शहर में शिया आलिम के द्वारा बताया गया कि वहां रजब के महीने में सन 2004 में एक लिल्लाहि सुम्मा लित्तारीख़ नामी किताब जो शियों के विरुध्द लिखी गई थी ट्रकों और बड़े बड़े कंटेनरों में भर कर क़तीफ़ ओर अल-हासा के शियों के बीच मुफ़्त में बांटी गई।

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