आयतुल्लाह मोहम्मद तक़ी मिस्बाह जनवरी 1935 में जन्में। उनके परिवार की केन्द्रीय ईरान के यज़्द शहर के एक धार्मिक परिवार में गणना होती थी और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अथाह श्रद्धा के लिए जाना जाता था।
जिस समय रज़ा ख़ान पहलवी के शासन काल में हर ओर घुटन व दमनात्मक वातावरण था और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शोक सभा का आयोजन अपराध समझा जाता था, मोहर्रम की रातों में आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी के पिता के घर के भूमिगत भाग में इमाम हुसैन की शोक सभा आयोजित होती थी और ऐसे माहौल में आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी का लालन-पालन हुआ।
आयतुल्लाह मोहम्मद तक़ी मिस्बाह जिस समय प्राइमरी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उस समय पहलवी शासन युवा पीढ़ी को अध्यात्म से दूर रखने के लिए धर्म विरोधी प्रचार करती था। किन्तु मोहम्मद तक़ी प्राइमरी शिक्षा में मेधावी होने के बावजूद धार्मिक शिक्षा की ओर उन्मुख हुए जिस पर उनके शिक्षकों व साथियों को आश्चर्य होता था। आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने यज़्द शहर के मदरसे में चार वर्षों तक आरंभिक व माध्यमिक स्तर की धार्मिक शिक्षा प्राप्त की।
वह 1952 ईसवी में क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र गए और वहां वह आगे की शिक्षा के लिए इतनी मेहनत करते थे कि दिन रात में मुश्किल से पांच या छह घंटे सोते थे। उन दिनों इमाम ख़ुमैनी उसूले फ़िक़्ह अर्थात धर्मशास्त्र के सिद्धांत की क्लास को पढ़ाते थे अतः आयतुल्लाह मिस्बाह ने उसूले फ़िक़्ह अर्थात धर्म शास्त्र के सिद्धांत की शिक्षा के लिए इमाम ख़ुमैनी की क्लास को चुना। आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी का मानना था कि इमाम ख़ुमैनी में किसी मामले को गहराई से देखने और स्वतंत्र विचार करने की अपार क्षमता थी इसलिए समय बीतने के साथ आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी भी दूसरे लोगों की भांति इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए और उनके क्रान्तिकारी विचार का आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी के जीवन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वह बाद में इस्लामी क्रान्ति के मज़बूत समर्थक बने।
आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने आयतुल्लाह बुरुजर्दी और अल्लामा तबातबाई जैसे प्रसिद्ध धर्मगुरुओं से भी शिक्षा हासिल की। उन्हें अल्लामा तबातबाई से विशेष लगाव था। वह अल्लामा तबातबाई की क़ुरआन की व्याख्या और दर्शनशास्त्र की क्लास में पूरी तनमयता से भाग लेते और क्लास के बाद जब अल्लामा तबातबाई अपने घर की ओर लौटते थे तो रास्ते में उनसे अपने प्रश्नों के उत्तर पूछते थे। ज्ञान की प्राप्ति में अत्यंत रूचि तथा बहुत से मामलों में अपने सटीक दृष्टिकोण के कारण उन्हें अल्लामा का विशेष शिष्य बनने का उन्हें सौभाग्य मिला और अल्लामा उनसे अपना हाले दिल भी बयान करते थे। आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी पवित्र क़ुरआन की व्याख्या के ज्ञान में अल्लामा के दृष्टिकोणों व सुझावों से लाभ उठाकर पवित्र क़ुरआन को गहरायी से समझने में इतने दक्ष हो गए कि अल्लामा तबातबाई ने अपनी प्रसिद्ध किताब तफ़सीरूल मीज़ान को छपवाने से पहले उन्हें प्रूफ़रीडिंग के लिए दी थी।
आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने एक और महान धर्मगुरु जिनसे वर्षों ज्ञान व परिज्ञान प्राप्त किया है, वह आयतुल्लाह तक़ी बहजत थे। उस समय बहुत कम लोग आयतुल्लाह बहजत को पहचानते थे और वह भी बहुत गिने चुने लोगों को ही अपना शिष्य बनाते थे। आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी अपनी बुद्धिमत्ता से आयतुल्लाह बहजत के अथाह ज्ञान व परिज्ञान को समझ गए और उनके अथाह ज्ञान से मोती बटोरे। आयतुल्लाह बहजत की ओर से बल दिए जाने के कारण आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने छात्रों के एक समूह को धर्मशास्त्र की शिक्षा देना आरंभ की। यह क़दम आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी के लिए एक सुअवसर साबित हुआ कि वह 15 वर्षों तक महाआत्मज्ञानी आयतुल्लाह बहजत के परिज्ञान से लाभान्वित हो सकें।
अंततः उस्ताद मिस्बाह यज़्दी ने बड़े परिश्रम से धार्मिक शिक्षा केन्द्र के सभी शैक्षिक चरणों को सफलतापूर्वक तय किया और वह 27 वर्ष की आयु में इज्तेहाद के चरण में पहुंच गए। इज्तेहाद इस्लामी धर्मशास्त्र के शैक्षिक दृष्टि से सबसे उच्च चरण को कहते हैं। धार्मिक शिक्षा केन्द्र में मुजतहिद बनने के बाद आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने वर्षों इस्लामी एवं पश्चिमी दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी और आज उनकी दर्शनशास्त्र के बड़े शिक्षकों में गणना होती है। इस समय दर्शनशास्त्र के विषय पर उनकी किताब ‘आमोज़िशे फ़ल्सफ़े’ अनेक विश्वविद्यालयों और सांस्कृतिक केनद्रों में पढ़ायी जाती है।
विशेषज्ञों के अनुसार आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में बहुत से नवीन बिन्दु पेश किए हैं। इसी प्रकार उन्होंने बहुत से छात्रों का भी प्रशिक्षण किया है। उन्होंने धार्मिक शिक्षा के इलावा भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र इत्यादि की भी शिक्षा हासिल की है। उन्हें अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषा की भा ज्ञान है।
आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी की एक बड़ी विशेषता यह है कि वह आरंभ से ही मित्रों का चयन बहुत सोच समझकर करते थे। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई भी उनके मित्र हैं। इसी प्रकार शहीद बहिश्ती से भी उनकी वर्षों मित्रता थी। उन दिनों आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी आयतुल्लाह बहिश्ती के साथ मिलकर शाही शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष में बहुत से सांस्कृतिक काम करते थे जिसमें मदरसों की स्थापना और नई क्रान्तिकारी पीढ़ी का प्रशिक्षण शामिल है। इसके इलावा ये दोनों हस्तियां इस्लामी शासन के बारे मे शोध टीम का गठन कर वरिष्ठ धर्मगुरु के नेतृत्व में इस्लामी शासन व्यवस्था के विचार की व्याख्या करते और इस प्रकार लोगों को इस्लामी नीति से अवगत कराते थे।
इस्लामी क्रान्ति की कामयाबी से पहले बहुत से संघर्षकर्ताओं का यह विचार था कि पहले राजनैतिक संघर्ष किया जाए और फिर क्रान्ति की सफलता के बाद समाज के सांस्कृतिक शोधन का काम किया जाए किन्तु इस दौरान वरिष्ठ नेता, आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी जैसे क्रान्तिकारी बुद्धिजीवियों का यह मानना था कि पथभ्रष्टता की जड़ संघर्ष के आरंभिक काल में ही सुखा दी जाए और शुद्ध इस्लाम से ईरानी व विश्व की जनता को परिचित कराया जाए।
आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी की जीवनी पथभ्रष्ट प्रक्रियाओं के ख़िलाफ़ उनके संवेदनशील होने की सूचक है। आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी इस्लामी क्रान्ति से पहले से मार्क्सवाद के प्रभाव से लोगों को सचेत करते थे कि जिसका युवाओं के बीच बहुत प्रचार किया जाता था। वे मार्क्सवाद की समीक्षा शीर्षक के अंतर्गत क्लास लेते और इसी प्रकार उन्होंने मार्क्सवाद के ख़िलाफ़ किताबें व लेख लिखकर इस दिशा में व्यवहारिक क़दम उठाया। इसके साथ ही आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी उन बुद्धिजीवियों के विचारों के खोखलेपन से लोगों को अवगत कराते थे जो अध्यात्म से ख़ाली इस्लाम की बात करते थे। उस्ताद मिस्बाह बहुत समझदारी से तर्क द्वारा इस्लामी शिक्षाओं का समर्थन करते थे जिसे उन दिनों भ्रष्ट विचारकों और इस्लाम व क्रान्ति के शत्रुओं के हमले का सामना था और इस मार्ग में वे भाषण, शास्त्रार्थ, किताब व लेख तथा दूसरे प्रचारिक साधनों की सहायता लेते और किसी की ओर से अपमान व आरोपों से नहीं डरते थे।
इस्लामी क्रान्ति की कामयाबी के बाद जब आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने यह आभास किया कि शत्रु ईरानी जनता को इस्लामी आस्थाओं से दूर करना चाहते हैं तो इस्लामी क्रान्ति के ताज़ा नेहाल की रक्षा के लिए धार्मिक छात्रों को देश के विभिन्न क्षेत्रों में भेजा और स्वयं भी क़ुम के धार्मिक केन्द्र में पढ़ाना छोड़कर, इस्लामी क्रान्ति की उपलब्धियों की रक्षा के लिए विभिन्न केन्द्रों में भाषण देना और लोगों की भ्रान्तियों को दूर करने का प्रयास किया। आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने विश्वविद्यालयों के महत्व और इन केन्द्रों में भ्रष्ट विचारों के प्रसार के मद्देनज़र छात्रों को धार्मिक केन्द्रों से जोड़ा ताकि उनकी भ्रान्तियां दूर हो सकें। इस उद्देश्य के लिए उन्होंने धार्मिक केन्द्र व विश्वविद्यालय सहयोग कार्यालय की स्थापना का सुझाव पेश किया कि जिसके व्यवहारिक होने का परिणाम आज विश्वविद्यालयों में देखा जा सकता है।
आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी ने ‘बाक़िरुल उलूम सांस्कृतिक केन्द्र’ की स्थापना द्वारा देश की एक और सेवा की है। इस धार्मिक केन्द्र में धार्मिक छात्रों को आर्ट्स के विषय की प्रास्नातक तक शिक्षा दी जाती है। इस केन्द्र में जिन ग्यारह मूल्यवान विषयों की शिक्षा दी जाती है वे इस प्रकार हैः अर्थशास्त्र, इतिहास, मनोविज्ञान, प्रबंधन, राजनीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र, विधिशास्त्र, फ़िज़िकल एजूकेशन, क़ुरआनी शिक्षाएं और धर्मशास्त्र। 1995 में इस केन्द्र का विस्तार हुआ और इस समय यह इमाम ख़ुमैनी शिक्षा-शोध केन्द्र के नाम से जाना जाता है।
आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी आज भी इस्लामी क्रान्ति की उपलब्धियों की रक्षा और भ्रष्ट प्रक्रियाओं से संघर्ष में व्यस्त हैं। यूं ही वरिष्ठ नेता ने आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी के लिए नहीं कहा है,“ यदि ईश्वर ने हमारी वर्तमान पीढ़ी को अल्लामा तबातबाई और शहीद मुतह्हरी जैसी हस्तियों से लाभान्वित होने का अवसर नहीं दिया किन्तु ईश्वर की कृपा से इस महान हस्ती (आयतुल्लाह मिस्बाह यज़्दी) ने इन प्रिय हस्तियों के शून्य को हमारे काल में भर दिया है।”