इमाम बाक़िर अ.स. का राजनीतिक संघर्ष (1)
इमाम बाक़िर अ.स. ने उसको देख कर उसके बारे में एक जुमला इस तरह इरशाद फ़रमाया कि यह जवान एक दिन सत्ता में आएगा और इसकी अदालत इसकी हुकूमत में दिखाई देगी, चार साल हुकूमत करेगा उसके बाद मर जाएगा, ज़मीन वाले उस पर आंसू बहाएंगे और आसमान वाले उस पर लानत भेजेंगे......
विलायत पोर्टल :
बनी उमय्या इमाम बाक़िर अ.स. के ज़माने में अपने आपसी मतभेद में इस तरह उलझे हुए थे कि वह इमाम बाक़िर अ.स. की इल्मी कोशिशों से बेख़बर थे, हालांकि इसका यह मतलब नहीं कि इमाम अ.स. की जान को कोई ख़तरा नहीं था, सैकड़ों रिवायतें उस दौर की हिंसक परिस्तिथियों की दास्तान बयान करती हैं कि किस तरह उस दौर के हाकिम, दीन, मुसलमानों और इमाम अ.स. पर ज़ुल्म करते थे, ज़ुल्म इस हद तक था कि इमाम अ.स. को तक़िय्या करना पड़ता था, और आख़िर कार इमाम अ.स. हुकूमत और उसके ज़ुल्म के विरोध ही के कारण शहीद कर दिए गए।
इमाम बाक़िर अ.स. के दौर के हालात को इन हाकिमों के रवैये और उनके कारनामों से समझा जा सकता है।
1- मरवान इब्ने हकम- इसके बारे में मसऊदी का बयान है कि इसके दौर में मोमेनीन छिप कर रहते थे, इसने लोगों का जीना मुश्किल कर रखा था, अहलेबैत अ.स. के शियों की जान को सख़्त ख़तरा था उनकी जान और उनके माल को नुक़सान पहुंचाना जाएज़ कर रखा था, और इमाम अली अ.स. का भरी सभाओं में अपमान करना आम हो चुका था। (इसबातुल वसीयत, पेज 146-147)
उसने माविया की सीरत पर अमल करते हुए अपने बेटे अब्दुल मलिक को अपना जानशीन बना दिया और वह ख़ुद ताऊन (प्लेग) बीमारी के कारण दमिश्क़ में मर गया। (मआरिफ़े इब्ने क़ुतैबा, पेज 354, कामिल इब्ने असीर, जिल्द 4, पेज 74)
2- अब्दुल मलिक इब्ने मरवान- इसने सन् 73 हिजरी में इब्ने ज़ुबैर को हरा कर पूर्ण रूप से सत्ता हथिया ली थी, हुकूमत और ख़ेलाफ़त हाथ आने से पहले ख़ुद को क़ुर्आन से बहुत क़रीब बताता था लेकिन सत्ता हाथ आते ही पैग़म्बर स.अ. के ख़ुलफ़ा का विरोध करने लगा। (अल-आलाम, जिल्द 8, पेज 312)
यह शराब भी पीता था (तारीख़ुल ख़ुल्फ़ा, पेज 216)
इसकी बे दीनी का हाल यह था कि जैसे ही सत्ता हासिल की वैसे ही क़ुर्आन से कहता है कि मेरा और तुम्हारा यह आख़िरी दीदार है। (तारीख़ुल ख़ुल्फ़ा, पेज 216)
यही वह बे दीन इंसान था जिसने हज्जाज जैसे ज़ालिम हाकिम को मुसलमानों ख़ास कर शियों पर थोप दिया था, उस ज़ालिम ने यहां तक कह दिया था कि अगर आज के बाद मुझ से किसी ने तक़वा और परहेज़गारी से संबंधित कोई बात की उसकी गर्दन उड़ा दूंगा। (तारीख़ुल ख़ुल्फ़ा, पेज 218-219)
अब्दुल मलिक इब्ने मरवान सन् 86 हिजरी में हलाक हो गया।
3- वलीद इब्ने अब्दुल मलिक- यह भी शराब और नशे के साथ बड़ा हुआ और एक अत्याचारी और ज़ालिम हाकिम था। (मुरूजुज़ ज़हब, जिल्ज 3, पेज 157)
यह और बात है कि इसकी हुकूमत में इस्लाम की सरहदों फैल गई और मुसलमानों ने स्पेन, ख़्वारज़्म, समरक़ंद, काबुल, तूस और दूसरे शहरों को जीत लिया था (तारीख़े याक़ूबी, जिल्द 2, पेज 285) लेकिन इसने हज्जाज जैसे ज़ालिम हाकिमों और गवर्नरों को जब तक यह ख़ुद सत्ता में रहा पावर दिए रहा जिसका नतीजा यह हुआ कि इसकी हुकूमत में 1 लाख 20 हज़ार अहलेबैत अ.स. के चाहने वाले क़त्ल किए गए। (मुरूजुज़ ज़हब, जिल्द 3, पेज 166)
यही वह दौर था जिसमें अहलेबैत अ.स. के सईद इब्ने जुबैर जैसे सहाबी को केवल अहलेबैत अ.स. से मोहब्बत के जुर्म में शहीद कर दिया गया। (सफ़ीनतुल बिहार, जिल्द 1, पेज 622)
इमाम सज्जाद अ.स. भी इसी वलीद के हुक्म पर दिए जाने वाले ज़हर से ही शहीद किए गए। (मुरूजुज़ ज़हब, जिल्द 3, पेज 164)
वलीद सन् 96 हिजरी में 43 साल की उम्र में वासिले जहन्नम हुआ। (मुरूजुज़ ज़हब, जिल्द 3, पेज 156)
4- सुलैमान इब्ने अब्दुल मलिक- इसकी बातों में अल्लाह की हुकूमत और उसकी मर्ज़ी रहती थी लेकिन काम सारे अपने बाप दादा वाले थे। (मुरूजुज़ ज़हब, जिल्द 3, पेज 174)
इसकी हुकूमत में दिखावा इस हद तक बढ़ गया था कि हर समाज और श्रेणी के लोग अलग अलग तरह के विशेष कपड़े पहन कर आते थे, और खाने पीने में इतना ध्यान रहता था कि हर समय पेट भरा ही रहता था। (मुरूजुज़ ज़हब, जिल्द 3, पेज 175)
इसकी सत्ता में हालात कुछ इस तरह थे कि इमामत के बारे में किसी भी तरह की बात करने की अनुमति नहीं थी, और शियों पर इतना दबाव था कि वह खुलेआम अपने इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. से मुलाक़ात नहीं कर सकते थे। (इसबातुल वसीयत, पेज 153)
5- उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़- सन् 99 हिजरी में इसको ख़िलाफ़त और हुकूमत मिली, इसने शियों के ऊपर से राजनीतिक दबाव को कुछ कम किया और फ़िदक को अहलेबैत अ.स. को वापस किया। (मनाक़िब इब्ने शहर आशोब, जिल्द 4, पेज 207)
यह इमाम बाक़िर अ.स. की नसीहतों पर अमल करता था, और इसने मिंबर से इमाम अली अ.स. का अपमान और उनको बुरा भला कहने की बनी उमय्या की परंपरा को भी ख़त्म किया (इसबातुल वसीयत, पेज 154)
इन सबके बावजूद हुकूमत जो अहलेबैत अ.स. का हक़ था उसे छीन कर ख़ुद हाकिम बना बैठा था, इमाम बाक़िर अ.स. ने उसको देख कर उसके बारे में एक जुमला इस तरह इरशाद फ़रमाया कि यह जवान एक दिन सत्ता में आएगा और इसकी अदालत इसकी हुकूमत में दिखाई देगी, चार साल हुकूमत करेगा उसके बाद मर जाएगा, ज़मीन वाले उस पर आंसू बहाएंगे और आसमान वाले उस पर लानत भेजेंगे, अबू बसीर कहते हैं कि मैंने पूछा अभी आपने कहा कि उसकी हुकूमत में अदालत दिखाई देगी अब कह रहे हैं कि आसमान वाले उस पर लानत भेजेंगे, इमाम अ.स. ने फ़रमाया जिस हुकूमत पर यह बैठेगा वह इसका हक़ ही नहीं है वह हमारा हक़ छीन कर हुकूमत पर बैठा और फिर अदालत से काम लिया। (इसबातुल हुदात, जिल्द 5, पेज 293)
6- यज़ीद इब्ने अब्दुल मलिक- उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ की सन् 101 हिजरी में संदिग्ध मौत के बाद यह 25 साल की उम्र में हुकूमत हासिल करता है और इसने सन् 105 हिजरी तक हुकूमत की। (तारीख़े याक़ूबी, पेज 314)
इन चार पांच सालों में इससे जितना ज़ुल्म हो सकता था इसने शियों पर किया और इमाम अली अ.स. और उनके पाक ख़ानदान से जितनी दुश्मनी हो सकती थी इसने निभाई और इमाम बाक़िर अ.स. से बहुत ज़्यादा नफ़रत करता था। (इसबातुल वसीयत, पेज 154)
7- हेशाम इब्ने अब्दुल मलिक- इसकी हुकूमत 19 साल 7 महीने तक रही और यह सन् 125 हिजरी में मरा (हयातुल हैवान, जिल्द 1, पेज 102) हेशाम इब्ने अब्दुल मलिक एक असभ्य, बद अख़लाक़ और दौलत का लालची इंसान था, कंजूसी, ज़ुल्म और बुरा व्यवहार उसकी अहम विशेषताओं में से थी। (मुरूजुज़ ज़हब, जिल्द 3, पेज 205)
यह भी इमाम बाक़िर अ.स. से बहुत नफ़रत करता था, और इसी के दौर में इमाम अ.स. को सबसे ज़्यादा राजनीतिक संघर्ष करना पड़ा, इमाम अ.स. के लिए इसकी हुकूमत का दौर बहुत सख़्त था क्योंकि हर कुछ दिनों पर आपको उसके दरबार में हाज़िर होना पड़ता था। (अल-ख़राएज वल जराएह, जिल्द 1, पेज 291)
इसकी हुकूमत में शियों पर भी पहुत पाबंदियां थीं, उन पर हर तरह का ज़ुल्म किया जा रहा था जिसकी मिसाल इमाम अ.स. के सहाबी जाबिर इब्ने यज़ीद जोफ़ी थे जिन्होंने इमाम अ.स. के हुक्म से हुकूमत के ज़ुल्म से बचने के लिए पागल बन कर ज़िंदगी गुज़ारी। (एख़तेसास, पेज 67)
इमाम सज्जाद अ.स. के बेटे हज़रत ज़ैद की शहादत भी इसी ज़ालिम की हुकूमत में इसी के हुक्म से हुई, और ख़ुद इमाम बाक़िर अ.स. भी इसी की हुकूमत में इसी ज़ालिम के द्वारा शहीद किए गए।
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